अटलांटिक महासागर का डॉलफिन बीच
और, केप टाउन का शहर
ढलती साँझ
और,
डूबते सूरज की गोद में;
एक सुनहरी शाम आने को है,
हुस्न और मुहब्बत का ये शहर;
रौनक और उल्लास की रौशनी में नहाने को है.....
और, ऐसें में,
ये तुम्हारा ही ख्याल है जो, मेरी रग-रग में रवां है,
इस हसीं शाम की बातों में जवां है...
कही दूर जो शाम ढल रही है,
और, सूरज धुंधला रहा है....... क्षतिज के उस पार,
कोई ढलते सूरज की रौशनी में मुस्कुरा रहा है....
वह तुम्हारा ही तो अक्स है....
कोई जाना-पहचान सा चेहरा है...... दिल को छु जाने वाला
कोई पुराना गीत है,
अपना सा....
प्यारा सा....
मुहब्बत सा....
ये जो तुम्हारी आँखे है; कभी साँझ बन जाती है.....
ये जो तुम्हारी प्यारी-सी आवाज़ है, लहरो का संगीत बन जाती है.....
और,
ये जो तुम्हारी हंसी है, अक्सर लालिमा बनकर असीमित व्योम में बिखर जाती है.......
और,
ये जो तुम्हारी नरम उंगलियां है....... यूँ ही अचानक लहरो सी चली आती है;
मुझे छूकर चली जाती है....
और,
बस,पूरा का पूरा भीग जाता हूँ ....
पूरा का पूरा भीग जाता हूँ .......
पूरा का पूरा भीग जाता हूँ.......
जानता हूँ, लहरो का सफर तय नहीं कर सकता ...
हवाएँ बहुत तेज़ है,
और,
तुम भी तो नज़दीक आती नही...
मेरी हमनफ़ज़-
जानता हूँ , की तुम्हे छु नहीं सकता;
चाहकर भी तुम्हारे करीब आ, नहीं सकता;
मगर फिर भी..... और, कुछ यूं ही..... या, फिर कह ले की शायद इसिलए,
कविता में तुम्हे ढूढंता हूँ,
पर,
आप इतनी हसीं है... की,
कविता शुरू ही नहीं हो पाती,
लफ्ज़ आकर लौट जाते है,
और, समंदर की लहरो में घूम हो जाते है.......
शायद, तुमसे मुहब्बत कर बैठा हूँ......
और, कर ही क्या सकता था.......
मगर, एक बात....
एक बात कहना बहुत ज़रूरी है,
तुम्हारे होने में तुम हो....
और, हो तो फिर बेइन्तहाँ हो.....
शायद मेरी रूह में.....
मेरी सांसो में,
मेरी मुहब्बत में,
मेरी कविता में,
मेरी ज़िन्दगी में,
मेरी मौत में,
या, शायद मेरे होने में......
की, महज़ तुम्हारे होने में तुम हो...
और, हो तो फिर बेइन्तहाँ हो...
जानता हूँ की दिन के उजाले में तुम नहीं आ पाओगी;
इसीलिए, सागर किनारे,
इक, सुनहरी रात का इंतज़ार करता हूँ....
की,कहीं तुम आ जाओ;
चांदनी बनकर..
या,
कोई हसीं तारा बनकर-------
बस इक नज़र तुम्हे ऐसे देख लूँ ....
की, ये चाँद पिघल जाये----
और, तुम चांदनी बनकर बिखर जाओ;
और, रात अँधेरे---- गहरे, अंतहीन सागर में.....लहरो के संग ;
ज़रा प्यार से,
ज़रा हौले से,
थोड़ा नशे में,
ज़िन्दगी के उस पार.....
चाहत की बेपरवाह गलियों में,
और, मुहब्बत की जन्नत में,
तुम्हे छु लें
तुम्हे छु लें
इक बार;
बस ----इक बार
सिर्फ.....
एक बार.........
और, केप टाउन का शहर
ढलती साँझ
और,
डूबते सूरज की गोद में;
एक सुनहरी शाम आने को है,
हुस्न और मुहब्बत का ये शहर;
रौनक और उल्लास की रौशनी में नहाने को है.....
और, ऐसें में,
ये तुम्हारा ही ख्याल है जो, मेरी रग-रग में रवां है,
इस हसीं शाम की बातों में जवां है...
कही दूर जो शाम ढल रही है,
और, सूरज धुंधला रहा है....... क्षतिज के उस पार,
कोई ढलते सूरज की रौशनी में मुस्कुरा रहा है....
वह तुम्हारा ही तो अक्स है....
कोई जाना-पहचान सा चेहरा है...... दिल को छु जाने वाला
कोई पुराना गीत है,
अपना सा....
प्यारा सा....
मुहब्बत सा....
ये जो तुम्हारी आँखे है; कभी साँझ बन जाती है.....
ये जो तुम्हारी प्यारी-सी आवाज़ है, लहरो का संगीत बन जाती है.....
और,
ये जो तुम्हारी हंसी है, अक्सर लालिमा बनकर असीमित व्योम में बिखर जाती है.......
और,
ये जो तुम्हारी नरम उंगलियां है....... यूँ ही अचानक लहरो सी चली आती है;
मुझे छूकर चली जाती है....
और,
बस,पूरा का पूरा भीग जाता हूँ ....
पूरा का पूरा भीग जाता हूँ .......
पूरा का पूरा भीग जाता हूँ.......
जानता हूँ, लहरो का सफर तय नहीं कर सकता ...
हवाएँ बहुत तेज़ है,
और,
तुम भी तो नज़दीक आती नही...
मेरी हमनफ़ज़-
जानता हूँ , की तुम्हे छु नहीं सकता;
चाहकर भी तुम्हारे करीब आ, नहीं सकता;
मगर फिर भी..... और, कुछ यूं ही..... या, फिर कह ले की शायद इसिलए,
कविता में तुम्हे ढूढंता हूँ,
पर,
आप इतनी हसीं है... की,
कविता शुरू ही नहीं हो पाती,
लफ्ज़ आकर लौट जाते है,
और, समंदर की लहरो में घूम हो जाते है.......
शायद, तुमसे मुहब्बत कर बैठा हूँ......
और, कर ही क्या सकता था.......
मगर, एक बात....
एक बात कहना बहुत ज़रूरी है,
तुम्हारे होने में तुम हो....
और, हो तो फिर बेइन्तहाँ हो.....
शायद मेरी रूह में.....
मेरी सांसो में,
मेरी मुहब्बत में,
मेरी कविता में,
मेरी ज़िन्दगी में,
मेरी मौत में,
या, शायद मेरे होने में......
की, महज़ तुम्हारे होने में तुम हो...
और, हो तो फिर बेइन्तहाँ हो...
जानता हूँ की दिन के उजाले में तुम नहीं आ पाओगी;
इसीलिए, सागर किनारे,
इक, सुनहरी रात का इंतज़ार करता हूँ....
की,कहीं तुम आ जाओ;
चांदनी बनकर..
या,
कोई हसीं तारा बनकर-------
बस इक नज़र तुम्हे ऐसे देख लूँ ....
की, ये चाँद पिघल जाये----
और, तुम चांदनी बनकर बिखर जाओ;
और, रात अँधेरे---- गहरे, अंतहीन सागर में.....लहरो के संग ;
ज़रा प्यार से,
ज़रा हौले से,
थोड़ा नशे में,
ज़िन्दगी के उस पार.....
चाहत की बेपरवाह गलियों में,
और, मुहब्बत की जन्नत में,
तुम्हे छु लें
तुम्हे छु लें
इक बार;
बस ----इक बार
सिर्फ.....
एक बार.........
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